हर मोड़ पे, एक और मोड़, मन गगन को चूमे चित चोर चोर, है दृश्य नया, मन मोर मोर, मैं बंसी अधर पे, तू ध्वनि बंसी की, मैं रात कालिका तू चंद्र रोशनी, हृदय चंचल, देह में शोर शोर, हर मोड़ पे एक और मोड़, जाने चला मैं किस ओर ओर!
by Prashant chand

हर मोड़ पे, एक और मोड़, मन गगन को चूमे चित चोर चोर, है दृश्य नया, मन मोर मोर, मैं बंसी अधर पे, तू ध्वनि बंसी की, मैं रात कालिका तू चंद्र रोशनी, हृदय चंचल, देह में शोर शोर, हर मोड़ पे एक और मोड़, जाने चला मैं किस ओर ओर!
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